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कण्वाश्रम- एक राष्टीय धरोहर

Introduction

"कण्वाश्रम ना तो कोई धार्मिक स्थान है और ना ही कोई दैविक स्थल है, अपितु ये वो भूमि है जो कि इस महान राष्ट भारत की आत्मा है और उस से जन्मी उत्सर्जन का प्रतीक है। इस स्थान को उसकी भव्य उॅचाइयों तक पहॅुचाना, इस देश के प्रत्येक नागरिक का सपना तथा कर्तव्य होना चाहिए। विश्व के अनेकों राष्ट मे ऐसे स्मारक है जो कि उनकी राष्टीय एकता का प्रतीक है और उस राष्ट के हर नागरिको को प्रेरित करता है। जन मानस तथा प्रतिष्ठित व्यक्ती इन स्मारक स्थलो मे जा, अपना शीश झुका उस राष्ट के निर्माताओं को श्रद्धांजलि देते है। पर हमारे राष्ट मे ऐसा कोई स्मारक नही है जो इस राष्ट के निर्माता “चक्रवर्ती सम्राट भरत” को समर्पित हो। यदपि बहुत समय बीत गया पर अभी भी, देर से सही, पर ऐसे कदम उठाये जा सकते है कि आगे आने वाली पीडियां को ये संदेश जाये कि वे भी इस विशाल भू भाग को एकीकृत रखे जैसा कि चक्रवती सम्राठ भरत ने किया था । तकि हम सब इस देश को आदर से भारतवर्ष कह कर सम्बोधन करते रहे।

Himalaya Image

हिम से ढकी हिमालय पर्वत की अन्नत पर्वत श्रेर्णियों के दक्षिण मे समान्तर श्रेर्णियों मे स्तिथ है शिवालिक पर्वत श्रेणियां (शिव की जटायें) जो कि साल के पेडो से बने घने जंगल से ढकी हुई है। दून घाटी तथा विश्व विख्यात जिम कोरबेट पार्क भी इन पर्वत श्रेणियों मे स्तिथ है। घने जंगलो से ढके इन पर्वतो के मध्य मे बहती है पवित्र मालिनी नदी। आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व इस नदी के तट पर स्तिथ था कण्व ऋषि का विश्व विख्यात आश्रम। इसे “कण्वाश्रम या कण्व का आश्रम” भी कहते थे। ये आज की परिभाषा मे एक विश्वविद्दालय या शिक्षा का आध्यात्मिक केन्द्र था जहां दस सहष्त्र विद्धार्थी ऋषी कण्व की देख रेख मे शिक्षा ग्रहण करते थे।

मालिनी के तट पर स्थित "कण्वआश्रम" या कण्व के आश्रम” के गौरवमय इतिहास से हमारे देश का क्या सम्बन्ध हो सकता है ये जानकारी वर्तमान समय मे विद्धवानों, बुद्धिजीवी को या आप सब मे से कुछ को हो जो भारतीय इतिहास या संस्कृति मे रूचि रखते हो तक ही सीमित हो । पर इस बात का हम सब को ज्ञान है कि जिस महान देश के हम नागरिक है उस देश को "भारत" या "भारतवर्ष" के नाम से जाना जाता है । क्यों ? शायद ये भी हमारे संज्ञान मे हो कि इस देश का नाम उस चक्रवर्ती सम्राट "भरत" के नाम से पड़ा जिसने इस विशाल भूखण्ड को एक राष्ट् के रूप मे एकीकृत कर इस पर कई वर्षों तक राज्य किया । इस महान राज्य की उत्पत्ति तथा उस के हज़ारों वर्षों के स्वर्णिम युग से आज तक बहुत समय बीत चुका है । मालिनी नदी पूर्ववत की तरह आज भी प्रवाहमान है पर नहीं है उसके तट पर वो विश्व विख्यात आध्यात्मिक तथा ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र, एक आदर्श महा विद्यालय जहॉ पर दस सहस्र विद्यार्थी कुलपति कण्व के अधीन शिक्षा ग्रहण करते थे।

    ऐष चारस्मदगुरे कण्वपतेः सदधदैवय इवः।शाकुन्तलया अनुमालिनीतीर आश्रमो दश्यते ।।                  अभिज्ञान शाकुन्तलम प्रथम अंक


"हमारे कुलपति कण्व का आश्रम दूर पहाडियों के पास मालिनि के तट पर दिकाई दे रहा है और वर्तमान मे उसकी अधिशासी शकुन्तला है।"


ये स्थान ऋषी मुनियों की तप स्थली भी था जहॉ वे साधना मे लीन मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठोर तप करते थे । ग्रन्थों के अध्ययन से ये निष्कर्ष तो निकाला जा सकता है कि कण्वआश्रम मालिनी घाटी के एक बहुत विस्तृत क्षेत्र ने फैला हुआ रहा होगा। शिकार का पीछा करते हुऐ मालिनि के तट तक पहुचे राजा दुष्यन्त ने कण्व की गोद ली हुई पुत्री शकुन्तला को देखा।

निर्जने तु वने यश्माच्छकुन्तेःपरिपालिता।शकुन्तलेति नामाश्स्याः कतं चापि ततो मया ।।                  अभिज्ञान शाकुन्तलम प्रथम अंक

"क्योकि उसे घनघोर जंगल मे कोलाहल करते पंछियो के मध्य मे पाया गया इसलिए उसका नाम शकुन्तला पडा। "


कण्वाश्रम वो स्थान है जहाँ राजा दुष्यन्त ने शकुन्तला से गन्धर्व विवाह किया तथा उनके परिणय से शकुन्तला ने भरत को जन्म दिया।


प्रस्थे हिमतो रम्ये मालिनीममितो नदीम् । जातमुत्सज्यन्त गर्भ मेनका मलिनिमनुः।
अस्तवयं सरवदमनः सर्वहि दमयत्सौ । स सर्व दमनो नाथ कुमार सम्पदधतः ।।   महाभारत Sambhav Parva 72


“ अत्यन्त ही सुन्दर हिमवत के अन्तिम प्रदेश है जहॉ कि पवित्र मालिनी के तट पर मालिनी अनुस्वरूप मेनका के गर्भ से उत्पन्न शाकुनतला ने एक शिशु को जन्म दिया है । उस के तेज तथा उसकी सब को दमन करने के कारण आश्रम वासियो ने उसका नाम सर्वदमन रखा दिया। "

मालिनि नदी के तटो के दोनो ओर उगे घनघोर जंगलो के बीच मे स्तिथ कण्वाश्रम मे इस बहादुर बालक ने अपना बचपन जगली जानवर तथा शेरो के बच्चो से खेलते हुए बिताया। बडे होकर इस बालक को चक्रवर्ती सम्राठ भरत के नाम से जाना गया जिसने इस विशाल भूखण्ड पर कई वर्षो तक राज्य किया। समय की विभीषिका ने कण्वआश्रम के भौतिक अस्तित्व को तो समाप्त कर दिया पर अपनी लेखनी से हज़ारों वर्ष बाद भी कण्वआश्रम के सजीव चित्रण से महाकवि कालीदास, जिन्हें उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों का सम्पूर्ण ज्ञान था, ने अपनी कृति " अभिज्ञान शाकुन्तलम् " मे कण्वआश्रम, मालिनी तथा उससे जुड़े समस्त पात्रों को अमर बना दिया।.