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मृग विहार

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    कण्वाश्रम मे 1956 मे भरत स्मारक के उदधाटन के उपरान्त वहां अन्य गतिविधियों मे तेजी आई। सब जन इस सोच से उत्साहित थे कि स्मारक की स्थापना तथा मेले के कारण क्षेत्र मे पर्यटको का आगमन बडेगा। अत 1958 मे वन विभाग दवारा पर्यटक बंगले के साथ के 12 हेक्टर क्षेत्र को तार-बाड से घेर कर एक मृग विहार इस उद्देश से बनाया गया कि ये स्थान एक पशुवाटिका के अलावा आस पास के वन से मिले घायल तथा अनाथ जानवरों को रखने के भी काम मे लाया जायेगा। जंगली जानवरो को एक सुरक्षित घर मिलने के अलावा पर्यटको को उनको देखने का मौका मिल जायेगा। जानवरो के पीने के पानी के लिए भाबर की मुख्य नहर से एक शाखा बनाई गई जो कि जानवरो के बाडे के बीच मे से ले जाई गई है।

    कुछ समय पशच्यात पर्यटको को ध्यान मे रखते हुए मृग विहार के साथ कुछ झूले इत्यादी लगा कर बच्चो के मनोरजन के लिए एक पार्क वन विभाग दवारा बनया गया। वन विभाग के प्रयासो के बावजूद मृग विहार मे दिन-प्रतिदिन जानवरो की संख्या मे कमी आई है। वर्तमान मे मृग विहार मे करीब 20 हिरण है। मृग विहार की टूटी हुई तार-बाड से अन्दर घुस कर तेदंवा जो कि यहां पर्याप्त संख्या मे है, आसानी से मृगो का शिकार कर लेते है।