पिछले 60 वर्षो मे कण्वाश्रम के विकास मे इस क्षेत्र के अनेक सम्मानित जन का योगदान रहा। इन सब मे से जिनकी कण्वाश्रम के विकास तथा प्रचार प्रसार मे अहम भूमिका रही वो मुख्यत है श्री ललिता प्रसाद नैथानी, श्री कुँवर सिंह नेगी 'कर्मठ तथा वर्तमान मे ले0 कमाण्डर वीरेन्द्र सिहं रावत (से0 नि0)। श्री नैथानी पेशे से एक वक़ील थे और कुछ समय कोटद्वार नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे। उनके दवारा अपने तथा अन्य लेखको दवारा कण्वाश्रम पर लिखे गये लेखो को संग्रहित कर दो पुस्तक प्रकाशित की जिनके नाम है “शकुन्तला की मालिनि” (समभ्वत 1958 या उसके बाद) तथा “मालिनि के खण्डर” (1983). एक और व्यक्ति जो की कण्वाश्रम के प्रति आजीवन समर्पित रहे वो थे कुँवर सिंह नेगी 'कर्मठ' जो अन्त तक २०१३ मे १०३ वर्ष की आयु तक समिति के सदस्य रहे । उनका कण्वाश्रम के प्रति महान योगदान कभी भुलाया नही जा सकता। उनके दवारा कण्वाश्रम पर अनेको लेख लिखे गये तथा प्रकाशित भी किये गये तथा कण्वाश्रम को राष्ट के मानचित्र पर लाने के लिए उनके दवारा अथक प्रयास किये गये। १९५६ मे स्थापित कण्वाश्रम विकास समिति विषम परिस्थितियों मे अपना दायित्व निभाते हुए कण्वाश्रम मे तथा सम्पूर्ण क्षेत्र मे विकास हेतु कार्य किये। समय के साथ बदलाव हुए और सरकार की नीतियों के आदेश तहत १९९२ मे समिति का पंजीकरण कराया गया और इस का श्रेय उस समय समिति के अध्यक्ष श्री चन्द्र सिंह रावत और महामंत्री श्री देवी प्रसाद डबराल को जाता है।
वर्तमानमे ले0 कमाण्डर वीरेन्द्र सिहं रावत (से0 नि0) जो कि भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्ति है ने कण्वाश्रम को राष्टीय मानचित्र पर लाने का दयित्व उठा रखा है। १९९८ मे उन्हे सर्वसम्मति से कण्वाश्रम विकास समिति के अध्यक्ष पर निर्वाचित किया गया और वर्तमान मे भी वे समिति के अध्यक्ष है। उनके दवारा लिख गयी पुस्तक “कण्वाश्रम”--चक्रवर्ति सम्राट भरत की जन्मस्थलि, का विमोचन 24 जनवरी 2015 को वसन्त पंचमी के दिन किया गया।