प्राकृतिक विभीषिका १९९१ इस क्षेत्र मे मूसलाधार वर्षा के रूप मे बरसी और कण्वाश्रम के समीप कोटदार से 11 कि0लि0 दूर चौकीघाट नामक स्थान पर पानी की मोटी धाराएँ जो पहाड़ से बह कर आई ने धरती की उपरी सतह की मिट्टी को अपने साथ बहा कर ले गई। ज़्यादा नही पर थोड़ा सा जिस के कारण धरती के नीचे हज़ारों वर्षों से दबे प्राचीन सभ्यता के शिलालेख/भवनावेश तथा मूर्तियाँ उभर कर बाहर आ गई। जिस जगह ये शिलालेख प्रकट हुए है एसा प्रतीत होता है कि धरती के भीतर वहॉ भवन के और अविशेष भी मौजूद है। इन बिखरे हुए शिलालेख/भवनावेश को देख ये प्रबल सम्भावना है कि ये समय की विभिषका के नही उजडे है पर इन्हे इस प्राचीन राष्ट की संस्कृती को समाप्त करने की नियत से विदेशी आक्रान्ताओं ने उजाडा है।
श्रीनगर गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्धालय कुछ शिलालेख प्रारंभिक अध्यन के लिए ले गये। केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाव, नई दिल्ली को लिखे एक खत मे विश्व विद्धालय के सम्बन्धित विभाग ने ये स्वीकार किया कि कण्वाश्रम से लाये गये शिलालेखो के अध्यन से ये प्रतीत होता है कि ये 10 वी से 12 वी शताब्दी के बीच के है। इसके पश्च्यात श्रीनगर गढवाल केन्द्रीय विश्वविद्धालय तथा केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाव, नई दिल्ली दारा उक्त क्षेत्र मे कोई उत्तखन्न या खुदाई नही की गय़ी।
सैभाग्य से जुलाई २०१२ मे एक बार फिर अत्याधिक वर्षा होने के कारण उसी क्षेत्र मे मिट्टी के बह जाने से कई और शिलालेख और स्तम्भ धरती से उभर कर बाहर आ गये। पर इस बार कण्वाश्रम विकास समिति ने इस होनी को संज्ञान मे लेते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दिल्ली स्थित मुख्यालय को चित्रों सहित ई-मेल द्वारा सूचित किया गया। विभाग के मुखिया ने तुरन्त कार्यवाही करते हुए अपने क्षेत्रीय देहरादून स्तिथ कार्यालय को उक्त स्थान का निरीक्षण करने को कहा। सितम्बर २०१२ मे देहरादून पुरातत्व विभाग का तीन सदस्यों का एक दल जिसमे श्री अतुल भारगव, श्री वर्मा तथा श्री पंण्डे थे, कण्वाश्रम पहुँचा और उन्होंने उक्त क्षेत्र का बारीकी से निरीक्षण कर कई चित्र लिए तथा कुछ नमूने भी जमा किये। इसके उपरान्त देहरादून पुरातत्व विभाग द्वारा एक विस्तारित रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय, दिल्ली को प्रेषित की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार इन शिलालेख, स्तम्भ तथा मूर्तियों को १० से १२ सदी ते बीच का बताया गया । विभाग द्वारा इस क्षेत्र मे कैम्प लगा कर और उत्खनन करने की बात भी ही गई थी पर उक्त क्षेत्र मे उनके दारा कोई उत्तखन्न या खुदाई नही की गय़ी।
एक बार फिर फरबरी 2016 मे एक सुन्दर मू्र्ती कण्वाश्रम क्षेत्र मे प्राप्त की गई। समिति दवारा इस सम्बन्ध मे जानकारी ई-मेल के माध्यम से पुरातत्व मुख्यालय, नई दिल्ली को प्रेषित कर दी गई। एक बार फिर पुरात्तव विभाग, देहरादून से एक दल कण्वाश्रव मे आ कर मूर्ती का बारीकी से अध्यन किया। इस कार्यवाही की रिपोर्ट समिति को प्राप्त नही हुई है। कण्वाश्रम विकास समिति का प्रयास जारी है कि पुरातत्व विभाग द्वारा इस क्षेत्र मे उत्खनन कार्य शीघ्र शुरू किया जाये ताकि मालिनी नदी के तटों के किनारे दबा इस देश का और कण्वाश्रम का गौरवमय इतिहास सब के समक्ष उजागर हो।