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कहानी - अभिज्ञान शाकुन्तलम

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महाकवि कालीदास दवारा जो कहनी अपनी नाटिका अभिज्ञान शाकुन्तलम मे वर्णित की गयी है वो महाभारत मे वर्णित कहानी से कुछ भिन्न है। कालीदास दवारा कुछ वृतान्त कथा मे जोड कर उसे रोमंचक तथा रोचक बनाया गया है।

राजा दुष्यन्त का कण्वाश्रम मे आने से ले कर उनका शाकुन्तला से गन्धर्व विवाह तक की कथा महाभारत से मिलती-जुलती है। इस कहानी मे राजा दुष्यन्त विदा लेते समय शकुन्तला के अनुरोध पर उसको यादगार स्वरूप अपनी राजसी अंगूठी निकाल कर उसे दे देते है तथा कहते है कि वो उसे लेने के लिए शीध्र अपनी चतुरंगी सेना भेजेगे। दुष्यन्त के जाने के बाद शकुन्तला राजा के खयालो मे खोई रहती है। एक दिन दुर्वाशा ऋषि आश्रम मे आते है। अपने खयालो मे खोई शकुन्तला दारा दुर्वाशा ऋषि का उपयुक्त सम्मान नही करती। इस उपेक्षा से क्रोधित हो कर दुर्वाशा ऋषि, शकुन्तला को श्राप देते है कि जिस की यादो के खो कर तूने मुझे उचित सम्मन नही दिया है वो तुझे भूल जायेगा। इस श्राप से सब आश्रम वासी सहम जाते है और दुर्वासा ऋषी से क्षमा माँगते है और शकुन्तला अपनी ग़लती मान क्षमा याचना करती है। दुर्वाषा कहते है की ऋषी का श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता पर पर उसका असर या सीमा कम की जा सकती है। अगर तुम उस व्यक्ति को कोई पहचान की वस्तु दिखाओगे तो वो तुम्हें पहचान जायेगा।

अपने पुत्र उसका हक़ दिलाने के लिए शकुन्तला अपने पुत्र और कुछ आश्रम वासियों के साथ कुलपति कण्व का आशीर्वाद लेकर अपने पति राजा दुष्यंत से मिलने के लिए आश्रम से प्रस्थान करती है। रास्ते मे गंगा नदी को पर करने के लिए सब एक नाव मे सवार होते हैं। नाव मे सवार शकुन्तला नदी के पानी मे अपना हाथ डाल जल क्रीड़ा करती है। दुर्भाग्यवश उस दौरान उसकी उगली से राजा की दी हुई अँगूठी निकल कर पानी मे गिर जाती है। राजा दुष्यंत की राजधानी पहुँच कर शकुन्तला अपने पुत्र के साथ राजा के महल मे उनसे मिलने जाती है और उनसे कहती है कि हे राजन आपने मेरे साथ गन्धर्व विवाह किया है और मेरे साथ ये बालक आप का पुत्र है और आप के दिये हुए वचन के अनुसार आप इसे अपनी शरण मे ले लीजिये और इसे अपने राज्य का युवराज घोषित कीजिये।


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दुर्वासा ऋषी के श्राप के कारण राजा दुष्यंत को कुछ भी याद नहीं रहता और वे शकुन्तला को अपने विवाह की कोई निशानी दिखाने को कहते है। शकुन्तला जब अपना हाथ उठा कर दिखाती है तो उस मे राजा की दी हुई अँगूठी नहीं होती। इस से शकुन्तला को सब के सामने अत्याधिक शर्मिन्दा होना पड़ता है और वो राज्य सभा को छोड़ कर अपने पुत्र के साथ वापस कण्वाश्रम आ जाती है। महाकवि कालीदास की रचना के अनुसार गंगा नदी मे एक बड़ी मछली पकड़ने के बाद जब एक मछुवारा उसे काट रहा था तो उसके पेट मे उसे सोने की अँगूठी मिलती है। अपने साथियों से पूछने पर उसे पता लगा कि वो अँगूठी तो राजा की है। इस बात का पता वहॉ मौजूद राजा के सिपाहियों को लगता तो वो उसे पकड़ कर राजा दुष्यन्त के पास ले जाते हैं। राजा जब उस अँगूठी को देखते है तो उसे सब याद आ जाता है और वो मछुवारे को बहुत सा इनाम दे कर विदा करते है।

अपनी याददाश्त वापस आने पर राजा को बहुत गिलानी होती है और वो अपने सेना के साथ शकुन्तला की खोज मे निकल पड़ता है। कण्वाश्रम के पास राजा को एक बालक दिखता है जो कि एक शेर का मुँह खोल कर उसके दाँत गिन रहा था। राजा के पूछने पर वो कहता है कि वो शकुन्तला का पुत्र है और राजा को आश्रम मे ले जाता है, जहाँ राजा दुष्यंत का शकुन्तला से मिलन होता है। राजा दुष्यंत अपनी पत्नी शकुन्तला और पुत्र को ले कर वापस अपनी राजधानी आ जाते हैं और अपने पुत्र को युवराज घोषित करते है। दुष्यंत - शकुन्तला के इस पुत्र को "भरत" के नाम से जाना गया। भरत ने इस विशाल भू खण्ड को एकीकृत कर कई वर्षों तक राज किया और इस चक्रवर्ती सम्राट के नाम से इस देश को "भारतवर्ष" पड़ा।