होम | कण्वाश्रम कैसे पहुँचे | A - Z Index
facebook

महाकवि कालीदास

kalidas.jpg

    कालीदास को इस देश का सबसे श्रेष्ट लेखक, कवि तथा नाटककार माना जा सकता है। अपनी नाटय कृति अभिज्ञान शाकुन्तलम मे कालीदास ने कण्वाश्रम का जीवान्त वर्णन किया है। अपनी सुन्दर शैली तथा वर्णन से कालीदास ने कण्वाश्रम तथा उससे जुडे सभी पात्र शकुन्तला, राजा दुष्यन्त, महार्षी कण्व, ऋषी विशवामित्र, भरत को अमर बना दिया। कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाये तथा हस्थियां है जो समय के साथ अतीत मे खो जाती है और आने वाली पीडियों को उनके बारे मे कोई ज्ञान नही होता। इस का एक कारण ये भी होता है कि वो लोग या घटनायें का यश या प्रताप किसी लेखक का ध्यान आकर्शित करने मे असफल होती है। कण्वाश्रम और उससे जुडे सभी पात्रो का भी यही अन्त निश्चित था अगर कालीदास दवारा अभिज्ञान शाकुन्तलम की रचना नही की गयी होती।


    नाटक मे कण्वाश्रम तथा उससे आस-पास के क्षेत्र के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि कालिदास को कण्वाश्रम की भूगोलिक स्थति से परिचित थे जो कि उत्तराखण्ड के जिला पौडी गढवाल मे है। इस से ये निशकर्ष निकलता है कि समभ्वत उनका जन्म उत्तराखण्ड मे हुआ था तथा राजा चन्द्र गुप्त -2 विक्रमादित्य (380-415) के राज्य उज्जैन मे जाने से पूर्व इस क्षेत्र मे काफी समय व्यतीत किया होगा। कालीदास की असाधारण प्रतिभा तथा गुण बचपन से ही सभी को प्रभावित रही थी। उनके इस प्रभावशाली चरित्र को नीचा दिखाने के लिए अनेक गलत कहानियां गडी गयी। पर ऐसा भ्रमक प्रचार जिसे कुछ सही समझते थे ने उनके लेखन पर कोई प्रभाव नही पडा। कालीदास ने अपनी प्रतिभा से अनेकों साहित्यिक कृत्यियों की रचना की जैसे कुमारसमभव, रघुवंस्म, मेघदूत, रृतूसम्भार, मलावी इत्यादी। अभिज्ञन शाकुन्तलम का विश्व की अनेको भाषाओं मे अनुवाद किया गया है जो की अपने आप मे एक कीर्तीमान है।